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महोबा के गोखारगिरि शिव ताण्डव के दर्शन के बिना कजली मेला अधूरा : डाॅ0 एल0सी0 अनुरागी

महोबा। बुंदेलखण्ड के महोबा जनपद की संस्कृति भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। इस जनपद को माण्डव ऋषि, श्रृं्रगी ऋषि एवं योगीराज गुरू गोरखनाथ ने अपनी भक्ति व शक्ति से अमर बना दिया। राजा संतोष सिंह बुंदेला अपनी रचना मे करते है कि मातृभूमि बुंदेलखण्ड भगवान से प्यारी है। धूल इन खोरन की है काजल कोरन की महोबा के गोखार पहाड़ मे आल्हा, ऊदल के गुरू गोरखनाथ ने अपनी तपस्या से इस क्षेत्र को चित्रकूट जैसा वंदनीय बना दिया। राजकवि पाण्डेय अपनी रचना मे अभिव्यक्त करते है। प्रातः यह अभिनंदनीय, पाठक निकंदनीय, वंदनीय विश्व मे बुंदेल भूम हैं धरती बुंदेल की धरा न और ठौर कहू, कर विश्वास देखो करणी स्वछंद ते कर मनुहार देखो तारन हजारन, ते जांच देखो सूरज ते पूॅछ देखो चंदा ते। महोबा एक ऐतिहासिक नगर है, महोबा को पूर्व मे कई नामो से पुकारा जाता रहा। पहले इसे कैकयपुर  या कैकय नगर कहा जाता था इस संदर्भ मे यह किवदंती है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के सौतेले नाना कैकयधीश ने से बसाया था। महोबा का दूसरा नाम पाटनपुर भी रहा है। इस संदर्भ मे लोगो का कहना है कि विभिन्न राजाआंे की राजधानी होने के कारण इसे सुडौल पत्थरों से पाटा गया, इसलिऐ इसे पाटनपुर भी कहा गया है परंतु इन नामो के ठोस प्रमाण नही मिल पा रहे है। चंदेल चंश के संस्थापक चन्द्रवर्मन नात्रुकदेव  ने इसे 831 ई0 मे अपनी राजधानी बनाकर महोत्सव नगर इसका नाम रखा। चन्द्रब्रम्ह ने भाडिल या भाण्डा यज्ञ कराया था इसलिए भी इसे महोत्सव नगर कहा गया और कुछ समय बाद जिस प्रकार दिल्ली का अपभ्रंश दिल्ली हो गया उसी प्रकार महोत्सव का अपभ्रंश महोबा हो गया। जैन ग्रंथ मे इसका नाम महोबक प्राप्त है। महाभारत काल मे यह नगरी महाबली के नाम से प्रसिद्ध थी। भविष्य पुराण मे महोबा नाम महोवती आया है। चन्द्र वरदाई ने महोत्सव नगर का उल्लेख किया है। महोबा की ख्याति अंतिम चंदेल शासक परमाल के राजकवि जगनिक द्वारा रचित लोककाव्य आल्हाखण्ड के कारण हुईं। महोबा बुंदेलखण्ड मे प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी आकर्षण का केन्द्र बना हुआ हैं सांस्कृतिक विरासत के साक्षी महोबा का पुरावैभव बहुत विस्तृत हैं बुंदेलखण्ड के अन्र्तराष्ट्रीय  पर्यटक स्थल खजुराहों काा प्रवेशद्वार वीरभूमि महोबा अपनी प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों, स्मारको मंदिरों गिरजाघरों के अलावा विन्ध्य पर्वतमालाओं की आध्यात्मिक शक्ति व भक्ति के लिये भी दूर- दूर तक की दुनिया के अनेक देशो मे जाना जाता है।

भुजरियांे या कजलियों के युद्ध मे जीत जाने पर कीरत सागर महोबा मे इस जीत को भगवान शिव की कृपा समझकर वीरागंना रानी मल्हना ने गोखार पहाड़ स्थित शिवताण्डव की प्रतिमा का दर्शन किया तभी से कजली मेले के दूसरे दिन गोखार पहाड़ पर स्थित भगवान शिव प्रागंण मे रक्षाबंधन के दूसरे दिन का मेला लगता हैं शिवताण्डव के दर्शन के बिना रक्षाबंधन का त्यौहार अधूरा माना जाता है। शिव ताण्डव के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। 

महोबा नगर के दक्षिण पश्चिम कोण पर स्थित गुरू गोरखनाथ की तपोस्थली के रूप मे विख्यात गोखार पहाड़। यह पहाड़ लगभग 270 एकड़ परिक्षेत्र मे ग्रेनाईट पर्वतावलि का धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व हैं तिमिच्छाछित गुफाओं, उपत्यिकाओं, झरनों तथा मर्दन टुंगा जैसे दुर्ग शिखरों के कारण वर्षा ऋतु मे यह स्थान आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। वीर आल्हा, ऊदल के पूज्य एवं नाथ सम्प्रदाय के प्रणेता गुरू गोरखनाथ एवं उनके सातवें शिष्य दीपकनाथ का यह पर्वत तपोभूमि रहा है। गोरखनाथ के नाम पर ही इस पहाड़ का नाम गुखार पहाड़ पड़ा।

इस पर्वत मे आज भी बहुमूल्य एवं दुर्लभ जड़ी बूटियों पायी जाती है। इस पर्वत मे त्रेतायुग मे भगवान राम अपने चैदह वर्ष के बनवास के दौरान रहे है। इस पर्वत मे सीता रसोई व रामकुण्ड शिवताण्डव के कुछ दूर सामने, उनकी उपस्थिति का प्रमाण देते है। इस पहाड़ पर स्थित अंधियारी व उजयारी चुल एवं सिद्ध बाबा का स्थान गोखार पहाड़ की गरिमा को और अधिक बढ़ाते है। इससे भी अधिक गरिमापूर्ण बात यह है कि इस पहाड़ की उन्तरपाद भूमि पर ग्यारहवीं सदी मे विनिमित एक ग्रेनाइट शिला पर भगवान शंकर की महाकाल की मुंदा मे नृत्यरत दस भुजी गजान्तक प्रतिमा है, जिसे शिव ताण्डव के नाम से जाना जाता है। इस शिव प्रतिमा का निर्माण महाराज धंग ने कराया था। यह मूर्ति उत्तर भारत मे अद्वितीय है। गजासुर के बध के उपरांत महादेव ने जो नृत्य किया है, वही नृत्य ताण्डव के रूपम े प्रसिद्ध है। शिवपुराण मे वर्णित उसी वर्णन की अनुकूति मूर्तिकार ने यहा सजीव की है। यह भव्य प्रतिमा एक चट्टान पर उत्कीर्ण की गई है। कर्मपुराण मे इसका उल्लेख मिलता है। इस प्रकार की गजासुर प्रतिमा दक्षिण मे ऐलोरा, हेलविका तथा दारापुरम मे भी है। शिवताण्डव के निकट शिव के प्रमुखगण कालभैरव की एक ग्रेनाईट मूर्ति भी इसके समीप स्थित है। एक जनश्रुति है कि गोरखनाथ के शिष्य दीपकनाथ एवं मुस्लिम संत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के शिष्य पीरमुबारक शाह के बीच सिद्धयों की प्रतियोगिता हुई थी। दोनो संत महोबा की जनता को आर्शीवाद प्रदान करते रहें गुरू गोरखनाथ भगवान शंकर के अवतार है, इसी कारण इस पर्वत की परिक्रमा करने से कामतानथ चित्रकूट की परिक्रमा के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। जहाॅ भगवान राम व गुरू गोरखनाथ निवास कर चुके है। यह स्थान चित्रकूट के ही समान है। अतः महोबा का गोरखगिरि मिनी चित्रकूट है। आज भी बहुत से नागरिक प्रत्येक समाह की पूर्णिमा को गोखार पहाड़ की परिक्रमा कर पुण्य फल प्राप्त करते है। गोखार पहाड़ के नीचे छोटी चंद्रिका माता का विशाल मंदिर है।

इसके आगे बढ़ने पर मदन सागर क्षेत्र के पश्चिमी छोर पर कजरियां युद्ध मे शहीद  हुए महोबाा के युवा वीर अभई व रंजीत की समाधि स्थल के दर्शन मिलेगे। परिक्रमा के आगे जाने पर एक सड़क मिलती है। जो श्रीनगर रोड से मिल जाती है। एवं गोखार पहाड़ के पश्चिमी मे आने पर पुलिस लाइन मिलती है। इसके आगे बढ़ने पर नागौरिया देवी, मनसा देवी का मंदिर मिलता है। फिर सुनरा सुनरिया का स्थान एवं आगे आने पर कालभैरव व मा काली के दर्शन होते है और शिवताण्डव मे आकर परिक्रमा पूरी हो जाती है, जो लोग इस परिक्रमा का महत्व जानते है वे प्रायः परिक्रमा कर पुण्यफल प्राप्त करते है। गोखार पहाड़ की कई चमत्कारिक व रहस्यपूर्ण घटनाएं हैं सन 1910 ई0 मे बरसात मे कुछ चैरसिया लोग एक गोष्ठी मे गोखार पहाड़ गये जब वहाॅ से लौटकर घर आये तो बसंतीलाल तमोली की तिजोड़ी की एक चाबी सोने की हो गई थी। एक बीजक  मे लिखा है कि गोरखगिरि के इकतीस कोने मे एक तीर से पौन मे गड़ो है। इतनो भण्डार पलै, द्वै तीन दिना संसार। इसका आशय यह है कि गोरखागिरि से इंसान उत्तर के कौन मे यह धन गड़ा हुआ है, इसका समर्थन शिव ताण्डव प्रतिमा जिस हाथ मे डमरू लिये है उसी हाथ मे एक उंगली आल्हा कोट की ओर संकेत करती है। स्कंद पुराण मे गुरू गोरखनाथ के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है। उनके जन्म, जन्म स्थान, माता पिता गोत्र आदि के संबन्ध मे अनेक किवदंतियां जनश्रुतियां तथा अनुश्रुतियां प्रचलित है। 

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