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हम अपनी नालियों का रासायनिक कचरा तो नहीं पी रहे ?

– शहर की नालियों से जहरीले होते तालाब

– तो क्या भूगर्भ जल में भी मिल रहा है तालाबों में घुला हुआ नालियों का जहर

महोबा। आज से ग्यारह सौ साल पहले महोबा के शासकों ने यहां की प्यास बुझाने के लिए जब शहर के आसपास तालाबों का निर्माण कराया था तब यह नहीं सोचा होगा की हमारी आने वाली पीढ़ी इन्ही तालाबों में अपने घरों की नालियों का कचड़ा बहाएंगे जो तालाब के पानी में मिलकर उसे जहरीला तो बनायेगा ही साथ ही यह जमीन के अंदर मौजूद पानी में पहुंच कर दूर दराज के बड़े इलाके के भूगर्भ जल को खतरनाक बनायेगा,जहरीले हो रहे पानी पर शासन स्तर पर भले ही कभी कभार चर्चा होती है लेकिन स्थानीय स्तर में कोई भी जनप्रतिनिधि आला अधिकारी जरा भी चिंतित नजर नहीं आते तभी तो जल सुधार के लिए चलाई गई परियोजनाएं या ठंडे बस्ते में है,या फिर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ कर आधी अधूरी पड़ी है।

 वैसे पानी की चिंता करने वाले समाज सेवियों के कई ऐसे झुंड है जो जल योद्धा, जल प्रहरी, जल पुरुष और न जाने क्या क्या प्रमाण पत्र लेकर वी आई पी श्रेणी में अपने आप को पेश करते नहीं थकते लेकिन थोड़ी बहुत इवेंट करने के बाद यह सालों नजर नहीं आते किसी एकाध गांव व मोहल्ले में जल सुधार का दावा करके दिल्ली और लखनऊ वह क्या करने चले जाते है ये तो वही बताएंगे, लेकिन महोबा शहर या जहां भी तालाबों में गंदे नालियों का पानी जमा होता है के हर एक नागरिक को यह सोचना होगा कि जिस बोरवेल या सप्लाई नल का पानी हम पी रहें है कहीं वह हमारे ही बाथरूम से निकला हुआ नमक साबुन निरमा आदि का हानिकारक रसायन नाली के पानी से जाकर किसी तालाब में जमा होकर फिर से जहर बनकर हमारे जमीन के अंदर से आ रहे बोर वेल के पानी में तो नहीं मिल गया क्या हम अपना ही बहाया हुआ कचड़ा फिर से तो नहीं पी रहे है।

       क्योंकि भूगर्भ जलस्तर स्तर को बढ़ाने का मुख्य स्रोत झील, तालाब, कुआ, झरना ही होते है, और जब इन्ही झील तालाबों में नालियों या अन्य तरीकों से जहरीला रसायन पहुंचेगा तो निश्चित ही वह भूगर्भ जल में मिलेगा और जिसका असर न सिर्फ तालाब के पानी पर बल्कि दूर दराज के उन इलाकों में भी हो सकता है,जहां तक उस तालाब या झील के पानी से भूगर्भ जल को बढ़ाता है। घरेलू या बाजारू तमाम वस्तुओं के बनाने में गैलियम आर्सेनाइड को अर्ध चालक साबुन, निरमा, कांच बनाने व चमड़े की वस्तुओ को सुरक्षित बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

तीन ऐतिहासिक तालाबों में जा रहा नालियों का पानी करोड़ों की योजनाएं अधर में लटकी

  शहर के मदन सागर ,कल्याण सागर, कीरत सागर का निर्माण दसवीं  सदी के आसपास चंदेल राजाओं ने इनका निर्माण कराया था जिसमें कल्याण सागर में समद नगर मोहल्ले की नालियों का पानी इसमें जाता है जिसे रोकने के लिए करोड़ों रुपए की लागत से वाटर ट्रीटमेंट् प्लांट बनाया जाना था जो कि महीनों से अधूरा पड़ा है, वहीं कीरत सागर में मिलने वाली नहर मकुंद लाल इंटर कालेज के पास अब गंदे नाले का रूप ले चुकी है राम नगर बंधान वार्ड के नालियों का पानी इसी नहर से मिलकर तालाब में पहुंच रहा है, तो शहर में पेय जल आपूर्ति करने वाले तालाब मदन सागर में दूध डेयरी प्लांट का वेस्ट केमिकल मिलाए जाने पर स्थानीय रहवासियों व डेयरी संचालक के बीच विवाद का कारण बन चुका है हालांकि काफी दिनों से यह मामला शांत है लेकिन तालाब के किनारे उंचाई वाली पहाड़ी में स्थित छोटी छोटी नालियों का पानी अब भी इसमें मिल रहा है जिसे रोकने के लिए प्रशासन के पास कोई स्थाई समाधान नहीं है।

हमें क्या खतरे ?

पानी में सुरक्षित स्तर से अधिक आर्सेनिक होने पर त्वचा रोगों की शुरुआत हो सकती है। इससे आर्टिरियास्कलेरोसिस जैसा नसों का रोग, किडनी के रोग, मानसिक रोग, हृदय रोग पैदा हो सकते हैं। वहीं त्वचा, फेफड़ों, लिवर, किडनी और ब्लैडर का कैंसर भी हो सकता है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के अनुसार भू-जल में खतरनाक रसायनों का प्रतिशत बढ़ रहा है। जिसकी वजह से पीने के पानी के साथ-साथ कृषि उत्पादों में भी जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक समेत अन्य रसायनों की मात्रा खतरनाक स्तर को भी पार कर चुकी है। इन रसायनों से हड्डी व मांसपेशियों के साथ साथ स्नायुतंत्र को भी नुकसान होता है। इस पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो आने वाले समय में हालात काबू से बाहर हो जाएंगे।

कैसे हो जल संरक्षण

 बरसात के मौसम में जो पानी बरसता है उसे संरक्षित करने की सरकार की कोई योजना नहीं। बारिश से पहले गांवों में छोटे-छोटे डैम और बांध बना कर वर्षा जल को संरक्षित किया जाना चाहिए। शहर में जितने भी तालाब और डैम हैं। उन्हें गहरा किया जाना चाहिए जिससे उनकी जल संग्रह की क्षमता बढ़े। सभी घरों और अपार्टमेंट में वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य किया जाना चाहिए तभी जलसंकट का मुकाबला किया जा सकेगा। गांव और टोले में कुआं रहेगा तो उसमें बरसात का पानी जायेगा। तब धरती का पानी और बरसात का पानी मेल खाएगा। जरूरी नहीं है कि हम भगीरथ बन जाएं, लेकिन दैनिक जीवन में एक-एक बूंद बचाने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। खुला हुआ नल बन्द करें, अनावश्यक पानी बर्बाद न करें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें। इसे आदत में शामिल करें। हमारी छोटी सी आदत आने वाली पीढिय़ों को जल के रूप में जीवन दे सकती है। दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश के लोग भी अपने सिर आये संकट के समाधान के लिए सरकार का मुंह ताक रहे हैं। वे भूल गए हैं कि पानी के संकट को ज्यादा दिन टाला नहीं जा सकता। जहां पानी ने कई सभ्यताएं आबाद की हैं, वहीं पानी लोगों को उजाड़ भी देता है। बेपानी होकर कोई गांव, शहर टिक नहीं सकता। उसे उजड़ना ही होता है। छोटे-मोटे गांव और शहर की तो औकात ही क्या, दिल्ली जैसी राजधानी को पानी के ही कारण एक नहीं कई बार उजड़ना पड़ा।

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