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वैध और अवैध खनन के चलते बुंदेलखण्ड की वसुधा हुई क्रूपित, दैवीय आपददाओं ने डाला डेरा 

– प्राकृतिक आपदा के लिये मानव के साथ साथ प्रदेश सरकारें भी दोषी 

-चार दशक से हो रहे बसुधा के दोहन से प्रकृति खफा

-समूचा बुन्देलखण्ड अहिस्ता अहिस्ता हो रहा है सूखाग्रस्त

महोबा। जब भी कोई दैवीय आपदा आती है तो मानव अपने आपको नहीं प्रकृति को दोषी ठहराने लगता है और अपने कर्म कृत्यों को छिपाने का भरसक प्रयास करता है। जबकि दैवीय आपदाओं को मानव द्वारा ही आमंत्रित किया जाता है और किया जाता रहा है। सूखा हो या बाढ़ तथा भूकंप जैसी विनाशकारी आपदाओं को हम्हीं सबने अपने कर्म कृत्यों से आमंत्रित किया है। जब आप चिन्तन और मंथन करेेगें तो आप अपने आपको ही इन सारी आपदाओं के लिये दोषी पायेगें। 

पिछले चार दशकों से समूचा बुन्देलखण्ड दैवीय आपदाओं से अकारण नहीं जूझ रहा है इसके पीछे प्राकृति का अंधाधुन्ध दोहन बगैर किसी रोकटोक के किया जा रहा है। स्मरण रहे कि चार दशक पूर्व बुन्देलखण्ड की वसुधा में सैकड़ों ऊंचे ऊंचे पहाड़ हुआ करते थे उक्त पहाड़ों पर बहुप्रजाति वृक्ष वसुधा के आभूषण के रूप में खडे मानव को बर्बस प्रफुल्लित और आनन्दित करते थे। उन बहुप्रजाति वृक्षों के अवलोकन से मानव स्वतः ही रोमान्चित और प्रसन्नचित हो जाता था। पहाड़ों में खड़े बहुप्रजाति वृक्ष भी मानसून को खींचकर अपनी ओर आकर्षित करते थे। पहाड़ों के अतिरिक्त हजारों एकड़ भूमि पर बहु प्रजाति वृक्ष, जिसमें वृक्ष लहलहाते थे, उन वृक्षों की ओट में विभिन्न प्रजाति के जीवजन्तु अपना आशियाना बनाये हुये थे। वृक्षों की अंधाधुन्ध हुई कटान और मानव ने जंगली जीवजन्तुओं को अपने कोपभाजन का शिकार बना डाला। हालाकि ये वृक्ष और जंगली जानवर हमारे दुश्मन नहीं मित्र हुआ करते थे। इन्हीं वृक्षों और जंगली पशुओं से मानव सभ्यता का उदय हुआ है। यहां चार दशक के लम्बे अन्तराल जंगलों और पहाड़ों में खड़े हरे भरे वृक्षों को मानव ने काट डाला। जंगली जानवरों को भी मौत की नींद सुला दिया।

जो पहाड़ सौ फिट से लेकर 500-700 फिट तक की उंचाई हुआ करते थे जिसकी चोटी तक निगाह डालने के लिये सिर का साफा और टोपी गिर जाया करती थी आज उन्हीं पहाड़ों में अंधाधुन्ध हुई कटान के चलते 200-से लेकर 300 फिट तक खनन कार्य कर डाला है। इन पहाड़ों में अवैध अंधाधुन्ध खनन कार्य के चलते आज स्थिति भयावह हो रही है। जिन पहाड़ों को देखकर हम रोमांचित हुआ करते थे आज उन्हीं खदानों को देखकर भयक्रान्त हो उठते है। गोचर और वन भूमि का भी ऐनकेन प्रकारेण मानव ने अपहरण कर लिया है और उनका समतलीकरण कर कृषि कार्य किया जा रहा है। भू-वैज्ञनिकों का यह भी मानना है कि अच्छी बारिश के लिये गढ्ढे होना जरूरी है। वनों की कटान और पहाड़ों में अवैध कटान के बाद पिछले तीन दशकों से बुन्देलखण्ड से प्रभावित होने वाली लगभग दो दर्जन छोटी बड़ी नदियों और नालों में भी बेतहासा अवैध खनन किया गया है। नदी नालों में अवैध खनन के चलते बड़ी नदियों की सहायक छोटी नदियों का अस्तित्व भी खत्म हो गया है। उदाहरण के लिये महोबा जनपद की चन्द्रावल नदीं का उल्लेख है मगर उसका अस्तित्व खत्म हो गया है। इसी तरह बांदा जनपद की सोना नदी तथा छतरपुर की केल, उर्मिल नदी इस तरह से तमाम छोटी नदियां अस्तित्व विहीन हो रही है। बड़ी नदियों की बात करें तो बेतवा, धसान, केन, बरमा नदी इन नदियों में करोड़ों रुपये की बालू को निकाले जाने से समूचा बुन्देलखण्ड सूखाग्रस्त क्षेत्र की स्थिति में आ खड़ा हुआ है। चूंकि उपरोक्त नदियों की प्रवाहित होने वाली धारा में जमी बरसाती पानी को सीपेज रखती थी जिसके कारण उक्त नदियों की अविरल धारा पूरे वर्ष प्रवाहित होते रहती थी। बालू के निकल जाने से बरसाती पानी सीधा प्रवाहित होकर समुद्र पहुंच रहा है और पहाड़ों जंगलों के साथ साथ हम मानव ने प्रवाहित होने वाली नदियों को भी कूपित कर दिया है। उनके तटों, कंगारों तथा पहाड़ों और जंगलों में लगे पेड़ काटकर बसुधा को भी निर्वस्त्र कर दिया है। चूंकि बसुधा का आभूषण वृक्ष ही हुआ करते हैं।

वृक्षों के कट जाने और अवैध खनन के चलते बुन्देलखण्ड की सुन्दर बसुधा को कूपित बना दिया है। प्राकृतिक के साथ हुये अत्याचारों का तो प्रतिफल अब मानव को भुगतना ही पड़ेगा। झमाझम बरसात के दो माह व्यतीत होने के बाद भी समूचे बुन्देलखण्ड के नदी तालाब और पोखरे सूखे पड़े है। पिछले बीस वर्षों से औसतन वर्षा हर वर्ष कम होती जा रही है। ये प्रकृति का कोपभाजन नहीं तो और क्या है। यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जंगलों, पहाड़ों और नदियों के अवैध खनन में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारें भी कम दोषी नहीं है। बुन्देलखण्ड की सुन्दर, मनमोहक वसुधा को कू्रपित करने में ब्यूरोक्रेसी व खादी और खाकी लगभग सभी जिम्मेदार हैं। 

विजय प्रताप सिंह (महोबा, बुन्देलखण्ड)
चिंतनीय विषय। जनहित में जारी……..

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