महोबा
रहिल सागर के मेले में दीवाली नृत्य की रही धूम
रिपोर्ट – राधे कुशवाहा
- कार्तिक स्नान करने वाली महिलाओ ने भी सूर्यकुण्ड मे व्रत का किया समापन
महोबा। चंदेल वंश के शासक रहिल वर्मन द्वारा निर्मित सूर्यकुण्ड, सूर्यमंदिर तथा रहिल तालाब के तट पर प्रत्येक वर्ष की भाॅति इस वर्ष भी मेले का आयोजन किया गया। सदियो पुराने रहिल सागर के तट पर आयोजित होने वाले मेले मे आस पास ग्रामीण अंचलो से पहुॅचे दिवाली नृत्य करने वाली ग्वालवालो की टोलियो ने ढोल नगाड़ो के साथ लाठी चलाने की कला कौशल का बेहतर प्रदर्शन किया। कई गु्रपो मे सरोवर के तट पर दिवाली नृत्य खेला गया वही दूसरी ओर कार्तिक स्नान करने वाली महिलाओ ने सूर्यकुण्ड और रहिल सागर पहुॅचकर कार्तिक मास के अंतिम दिन अपने आराध्य देव भगवान कृष्ण की विधिवत पूजा अर्चना कर व्रत तोड़ा।
मौन चराने वाले जिन लोगो के 12 वर्ष पूरे हो चुके थे उन्होने रहिल सागर और सूर्यकुण्ड मे पहुॅचकर गौपूजन तथा परम्परागत अनुसार ब्रम्हभोज और टोलियो मे मौन चराने वाले साथियो और परिजनो तथा नाते रिस्तेदारो को आमंत्रित कर विधिवत पूजा अर्चना उपरांत भोज भण्डारो का आयोजन आज सारे दिन होता रहा।
कलान्तर मे लोग प्रथक -प्रथक स्थानो पर डुग्गी, झोपड़ी डालकर निवास करते थे वर्ष ऋतु मे नदी नालो मे पानी आने से सम्पर्क टूट जाता था और चार पाॅच माह तक लोगो का आपसी मे मेलमिलाप नही हो पाता था चार पाॅच माह तक सम्पर्क टूटे रहने और आपस मे मेलमिलाप न हो पाने के कारण पूर्वजो द्वारा मेलमिलाप किये जाने की दृष्टि से जगह- जगह तथा धार्मिक स्थलो पर मेलो का आयोजन किया गया था। पाॅच- छः माह तक मेल मिलाप न हो पाने के कारण मेले जैसे निहीत स्थान पर पहुॅचकर लोग एक दूसरे से मेलमिलाप तो होता ही था साथ ही एक स्थान पर बैठकर एक दूसरे की कुशलक्षैम जान लेते थे। शरदपूर्णिमा के बाद शादी विवाह भी होना सनातन संस्कृति के तहत शुरू हो जाती है तो मेलमिलाप के दौरान शादी विवाह की चर्चाऐ भी लोग आपस मे कर लेते थे। मेलमिलाप के शब्द से ही मेले जैसे शब्द का उदभव हुआ है।