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समाज में यौन अपराधों की बढ़ती घटनाएं मन को बिचलित कर देने वाली है। पुलिस प्रशासन या कानून के जरिएं इन्हे रोक पाना सम्भव नही है। रोक के लिए समाज को ही जागरूक होने की आवश्यकता है, समाज मे बढ़ती पाश्चात्य संस्कृति ने समाज को कलंकित करने का ही काम किया है। आधुनिक होना अच्छी चीज है लेकिन आधुनिकता के नाम पर भौड़ी फैशन परस्ती और नग्नता का प्रदर्शन करना भारतीय संस्कृति से मेल नही खाता, यदि आधुनिक होने का मतलब, बेशर्म बनकर जीना है तो ऐसे लोगो से दूर रहने की आवश्यकता है। लड़कियां घर से बाहर निकली नही कि तमाम भेड़ियो की निगाहे उनके शरीर पर पड़ने लगती है। लड़कियो और बच्चियो को इस बात का आभास ही नही हो पाता कि बहसी निगाहे उनका पीछा कर रही है एक भी दिन ऐसा बाकी नही जाता होगा जिस दिन किसी मासूम लड़की तथा औरत पर डाका डाला जाता हो इस तरह की सुर्खिया बनती है और हम जिज्ञासु निगाहो से पढ़ते है इस दिल दहला देने वाली घटनाओ को खबर समझकर भुला देते है और अगले दिन फिर हमारा सामना ऐसी ही खबरो से हो जाता है ऐसा नही है कि बलात्कार की घटनाएं पहले नही होती थी।
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फर्क इतना है कि पहले इस तरह की घटनाएं अधिक होने पर चर्चाएं अधिक नही होती थी क्योकि मीडिया का दायरा विस्तुत नही था। पढ़ने सुनने वाले भी मुटठी भर हुआ करते थे अब इस तरह की घटनाओ पर चर्चाए अधिक होने लगी है। लेकिन यह चर्चाओ तक सीमित नही है। हम इससे कभी कोई सीख नही लेते। नग्नता, अश्लीलता बढ़ेगी तो इस प्रकार की घटनाएं घटना स्वभाविक है, तभी हमारे समाज मे इस पर चिंतन, मनन किया जाता था कि ऐसी घटनाएं क्यो हो रही है।
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टीवी, मोबाइल अन्य माध्यमो के जरिएं घर- घर परोसी जा रही अश्लीलता काफी हद तक इसके लिए जिम्मेवार है। संयुक्त परिवारो को बिखरने और काम की व्यस्ता और आधुनिकता ने इस प्रकार की घटनाओ को आमंत्रित किया है बढ़ती मानसिक विकृति, बलात्कार जैसे घृणित कार्य को अंजाम मानव की प्रवत्ति दे रही है अक्सर होता यह है कि तमाम घटनाएं इज्जत उछलने के डर से बाहर नही आ पाती है, पुलिस का रवैया पीड़ित पक्ष के प्रति कम ही अच्छा देखा गया है। गरीब मजदूर की बेटी के साथ किया गया कुकृत्य और यदि आरोपी रसूकदार ऊॅची पहुॅच वाला है तो न्याय मिल पाना सम्भव नही हो पाता है, ऐसे लोगो पर कठोर कार्यवाही न होने से कुकर्मियो के हौसले पस्त होने के स्थान पर बढ़ते है।
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एक शिकार के बाद अगले शिकार के लिए दरिंदे निकल पढ़ते है यौन उत्पीड़न बलात्कार आदि की घटनाएं रोकना है तो समाज को भी अपनी जिम्मेवारी को समझना होगा। पुलिस प्रशासन और कानून के भरोसे इन घटनाओ को रोक पाना 21वीं सदी मे सम्भव नही है इसके लिए सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है।