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बारह बरस लौ कूकर जीवेे, और तेरा लो जिये सियार। बरस अठारह क्षत्रिय जीवे, आगे जीवन को धिक्कार, बुंदेलखण्ड की शान है आल्हा गायन

महोबा। बुंदेलखण्ड का महोबा वीर आल्हा-ऊदल के लिए जाना जाता है। आल्हा ऊदल ने महोबा के कजरी युद्ध मे दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चैहान को हराया था। आल्हा खण्ड मे वर्णित भुजरियों कजली की लड़ाई व अन्य लड़ाईयों का वर्णन है जिसे अल्हैत वर्षा ऋतु लगते ही गांवो की चैपालो मे गाते है। किसी कवि ने लिखा है भरी दोपहरी सरवन गाइये, सोरठ गाइये आधी रात। आल्हा पवाड़ा का दिन गाइयोे जा झड़ी लगै दिन रात। आल्हा गायन सुनकर युवाओं मे जोश आ जाता है। वे युद्ध के लिए उतावले हो जाते है। आल्हा खण्ड मे उल्लेख है- बारह बरस लौ कूकर जीवेे, और तेरा लो जिये सियार। बरसि अठारह क्षत्री जीवे, आगे जीवन को धिक्कार। आल्हा ऊदल माॅ शारदा के भक्त थे। माॅ शारदा ने आल्हा की भक्ति से प्रसन्न होकर आल्हा को अमरता का वरदान दिया था। आल्हा खण्ड मे वर्णन इस प्रकार है- बड़े लडैया ये लड़के है जिनसे लड़ै न पावै पार। काया अमर करी शारदा ने, हुइगें माण्डरीक औतार। आल्हा-ऊदल ने अपनी वीरता से महोबा का नाम ऊॅचा किया।

पं0 परमानंद ने कहा था- ग्रीस के स्पार्टा के टक्कर का इतिहास रखने वाली नगरी महोबा है। आल्हा खण्ड मे 52 लड़ाईयों का वर्णन है। इन्ही लड़ाईयो का वर्णन आल्हा गायकों द्वारा पूरे बुंदेलखण्ड मे किया जाता है। आल्हा खण्ड मे वर्णित लड़ाई देखिये- खट खट- खट खट तेगा बोले, बोले छपक-छपक तलवार। गर गर, गर गर, गोला छूटै गोली बरसे मूसलाधार। भाला छूटै अस्वारन के, पैदल चलन लगी तलवार। लागै गोला जा हाथिन के मानव महल गिरा अरराय। लागै गोला जिस घोड़ा के चारो सुम्म गिरे फैलाय। फुंके मसाला जब गोलन के तब फिर मारू बंद हो जाय। सन सन, सन सन, गोली बरसे, जैसे ओलन की बौछार। गोली बोले पै लागत है, भागे श्वेत छोड़ असवार। मघा के बूंदना गोली बरसै, कहूॅ कहूॅ कड़ बीन की मार। भर -भर, भर भर ढालै बोले, ठन ठन ढालै की झनकार। झल झल, झल झल छूरा चमके बोले मारू मारू सब मार। मुण्डन केरे मुड़चैरा मे और मुण्डन के लगे पहर। खून की नदियां त बवह निकरी, जाके बड़े बड़े सरदार। छुरी कटारी मछी मानो, औ धड़ नैया सम उतराय। वर्तमान मे युवा पीढ़ी आल्हा गायकी से कोसो दूर है।

युवा केवल कैसेट से आल्हा गायन सुनते है। इस कला को युवा सीखना नही चाहते। समय रहते संस्कृति विभाग व प्रशासन को पूरे बुंदेलखण्ड मे आल्हा गायन का आयोजन कराना चाहिए अन्यथा यह कला विलुप्त हो जायेगी।       

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