बगैर कट्टा बन्दूक निजी विद्यालयों के संचालक अभिभावकों से कर रहे अवैध वसूली- प्रशासन मौन
महोबा। नवीन शिक्षा सत्र शुरू होते ही विद्यालय संचालक और पाठ्यक्रम विक्रेता साठ गाठ कर अभिभावको की जेब पर खुलेआम डाल रहे है डाका। विद्यालय संचालक एडमिशन के नाम पर अभिभावको को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन तथा उचित शिक्षा देने का भरोसा दिलाकर अभिभावको से गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष 20 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत तक अधिक डोनेशन के नाम पर भारी भरकम रकम वसूली जा रही है। इतना ही नही शिक्षा माफिया पुस्तक विक्रेताओ से संाठ -गंाठ कर 10-20 रूपये की किताबे प्राइवेट छापाखानो से छपवाकर सौ रूपये से लेकर डेढ़ सौ रूपये तक बेची जा रही है। मुसीबत तो इस बात की है कि प्रदेश सरकार द्वारा अभी तक नवीन सत्र की पुस्तके छपवाकर मार्केट मे नही उतारी गयी है और न ही प्राइवेट विद्यालय के संचालको को सरकार से निर्धारित किया गया पाठय्क्रम लागू नही किया। 20 रूपये की कापी पर विद्यालय का नाम पिं्रट कराकर उसे 50 रूपये मे बेचा जा रहा है। प्रशासन व शिक्षा से जुडे अधिकारी सब जानते हुए अंजान बने बैठे है यही मुख्य बजह है कि अभिभावक मजबूरन कापी किताबे कई गुने दामो पर खरीदने के लिए मजबूर है। शिक्षासत्र मे विद्यालय संचालक पुस्तक विक्रेताओ से साठ गाठ कर लेते है। पुस्तक विक्रेता विद्यालय संचालको को आकर्षक उपहार देने का लालच देते है साथ ही कापियो मे विद्यालय का नाम अलग से प्रिंट कराया जाता है। इस खेल मे सिर्फ बच्चो के कोर्स मंहगे हो जाते है बल्कि अभिभावको को अधिक जेब ढीली करनी पढ़ती है। अब सवाल यह है कि 20 रूपये की कापी मे विद्यालय का नाम छपवाने से उसकी कीमत 50 रूपये क्यो कर दी जाती है ? विद्यालयो का नाम छापने मात्र से ही यदि बच्चे की शिक्षा होती है तो उन्हे पढ़ने की जरूरत क्या है लेकिन विद्यालय संचालक पुस्तक विक्रेता आपस मे साठ गाठ कर अभिभावको को खुलेआम लूट रहे है सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि सम्बन्धित विद्यालय का जिस विक्रेता के यहा सम्पर्क है उसी के यहा पाठ्यक्रम सामग्री मिलती है। यदि अभिभावक दूसरी दुकान पर खरीदना चाहे तो उसे विद्यालय संचालक द्वारा पुस्तको को वापस करा दिया जाता है इतना ही नही अभिभावक दूसरी दुकान से कापिया खरीदे और सम्बन्धित दुकान से पुस्तक लंेनंे जाये तो उन्हे पुस्तक विक्रेता द्वारा भगा दिया जाता है पूरे कोर्स की कापिया व किताबे लेने पर ही उसे समस्त सामग्री दी जाती है। छोटे कक्षाओ के कोर्स की पुस्तक अभिभावको को तीन से पाॅच हजार रूपये तक खरीदना पड़ती है। पुस्तक विक्रेता व संचालक का आधा, आधा कमिशन होता है। अब तो कुछ विद्यालय संचालको ने अपने विद्यालय से ही मनमाने दामो पर पुस्तके देने का कार्य शुरू कर दिया है जिसमे मुख्य रूप से संत जोसफ इस मामले मे अभिभावको के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है लेकिन विभागीय अधिकारी जानकर अंजान बने हुए है। जिसके कारण अभिभावको मे अच्छा खासा आक्रोश देखा जा रहा है परन्तु मजबूर है।