- खनन से करोड़ों का राजस्व देने वाला गांव ,बुनियादी सुविधाओं के लिए रहा जूझ
उत्तर प्रदेश/महोबा। पत्थर मंडी कबरई में अहम स्थान रखने वाले गांव में चालीस साल से स्टोन बोल्डर का खनन हो रहा है, प्रदेश व देश के बड़े इलाके में यहां के उप खनिज से विकास के काम होते आ रहे है लेकिन सालों तक दलदल और कीचड़ वाली गलियों से जैसे तैसे निजात मिली है,पर यहां के रहवासी पीने के पानी, रोजगार और शिक्षा के लिए जूझ रहे है,सालों पहले बनी पानी की टंकी भी पूरे गांव की प्यास नहीं बुझा पा रही है काम के आभाव में पलायन भी नहीं थम रहा है सरकारी स्कूल होने के बाद भी लोग छोटे बच्चों बाहर पढ़ाने को मजबूर है।
खनिज न्यास के करोड़ों खर्च होने के बाद भी नहीं बुझी प्यास
मुख्यालय से मात्र दस किलोमीटर की दूरी पर डहर्रा के ग्राम प्रधान जितेंद्र सिंह कहते है कि पांच साल पहले गांव में पानी की टंकी खनिज न्यास के पैसे से बनवाई गई थी तब लग रहा था की पीने के पानी के लिए अब गांव वालो को समय खराब नहीं करना पड़ेगा, लेकिन जब मुझे जनता ने प्रधान चुना तो जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है टैंकरों से गांव में पानी सप्लाई करनी पड़ रही है 22 हैंडपंप अपने पैसे से लगवाने पड़े है लेकिन करोड़ों की लागत से तैयार हुई पेय जल परियोजना में जगह जगह लीकेज है आए दिन मोटर और वाल्व खराब होते आधे गांव को भी इससे पानी नहीं मिल पाता है, यदि काम की गुणवत्ता पर सवाल उठाए जाते है तो नेता अधिकारी सुनते नहीं है उच्च अधिकारियों को लिखित में सारी कमियां बताई है आश्वासन मिला है इंतजार कर रहे है लेकिन जनता की मुसीबतों को हल करने के लिए खुद से पैसा खर्च करना पड़ रहा है। उप जिलाधिकारी को दिए प्रार्थना पत्र को दिखाते हुए वह आप बीती बताते हुए काफी उदास हो गए।अभी तक यह परियोजना किसी को हैंड ओवर नहीं की गई बस मरम्मत चलती रहती है।
चार साल बंद पड़ी रही पानी की टंकी कर्मचारियों को नहीं मिला वेतन
टंकी के आपरेटर सज्जन बताते है कि 2017 – 18 में यह बनाना शुरू हुई थी,करीब दो साल तक काम चला इसके बाद जैसे ही इसे चालू किया तो लीकेज और खराबियां आना शुरू हो गया, मरम्मत और चलानें के लिए पैसे नहीं मिले दो तीन महीने जैसे तैसे चली और बंद कर दिया चार साल तक यह बंद पड़ी रही अभी चुनाव के पहले अधिकारी आए और वेतन देने का आश्वासन देकर चले गए दस पंद्रह दिन सप्लाई चल तो रही है,लेकिन खराबी होने के कारण पानी कुछ ही घरों में पहुंच पा रहा है।
गांव में सरकारी स्कूल तो है, फिर भी प्राइवेट स्कूल में पढ़ते है बच्चे
गांव के प्रहलाद तिवारी बताते है कि गांव के पच्चीस प्रतिशत छोटे बच्चे महोबा शहर में पढ़ने जाते है,सरकारी स्कूल में एक तो अध्यापक कम है दूसरे वह दिन भर सरकारी काम में व्यस्त रहते है इससे पढ़ाई में गुणवत्ता नहीं रहती मजबूरी में अधिक पैसा खर्च करके बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजना पड़ता है।
गांव में होता है करोड़ों का खनन कारोबार फिर भी पलायन कर रहे मजदूर
साढ़े पांच हजार की आबादी वाले इस गांव में खेती वाली जमीन कम ही बची है ज्यादातर किसानों की जमीनें स्टोन क्रेशर लगाने के लिए खनन कारोबारियों ने खरीद ली है,यहां करीब पचास से ज्यादा क्रेशर ओर इतने ही खनन पट्टे है लेकिन गांव के लगभग पांच सौ लोग बाहर कमाने खाने जाते है। अट्ठाइस साल का सुरजीत और पचास साल के सत्तू यादव कहते है कि खदानें इतनी गहरी हो गई है कि वहां आए दिन दुर्घटनाओं में मजदूरों की मौत हो जाती है।
इसलिए डर के मारे गांव के कम लोग ही काम करने जाते है, और क्रेशर मशीनें ज्यादातर बाहरी लोगों की है वह गांव के लोगों को काम नहीं देते,मजबूरी में घरों में ताले लगाकर कई परिवार काम की तलाश में बाहर चले गए है सत्तर की उम्र पार कर चुके संता के दोनो बेटे अपनी बहुओं को लेकर कमाने निकल गए है दो छोटे – छोटे नातियो के साथ रहकर अपने बुढ़ापे के दिन काट रहे है वे कहते हैं खदानों में खतरा है वहां अपने बच्चों को कभी काम नहीं करने देंगे।
क्या कहते है जिम्मेदार
उप जिलाधिकारी जितेंद्र सिंह कहते है कि टंकी की मरम्मत के लिए संबंधित विभाग को निर्देशित किया गया है जल्दी ही पूरे गांव को सप्लाई से पानी मिलने लगेगा।