समय और समाज के संदर्भ में सजग रहकर नागरिकों में दायित्व बोध कराने की कला को पत्रकारिता कहा जाता है। समाज हित में सही और सम्यक प्रकाशन को पत्रकारिता कहते हैं। असत्य, अशिव और असुंदर पर सत्यम शिवम सुंदरम की शंख ध्वनि ही पत्रकारिता है। लेकिन आजकल समाचार पत्रों और चैनलों की बिक्री और क्रेज बढ़ाने के लिए मनुष्य स्वभाव की हीन वृत्तियों को उत्तेजित कर, हिंसा और द्वेष फैलाकर, बड़ों की निंदा कर और लोगों की घरेलू बातों पर कुत्सिक टीका टिप्पणी कर समाचारों की प्रस्तुति की जा रही है। इसी तरह से महामूर्ख धनी की प्रशंसा कर, स्वार्थी तत्वों के हित चिंतक बनकर भी पैसा कमाया जा सकता है। लेकिन यह सब पत्रकारिता की आड़ में हो तो यह कितना शर्मनाक है। आज की पत्रकारिता में स्वार्थी तत्व समाचार पत्र और पत्रकार शब्द के गौरव को नष्ट कर रहे हैं।
लॉस एंजिल्स टाइम्स के ओटिस शैलेलर का मत है कि सत्य का सामाजिक मूल्य होता है, चाहे सत्य से किसी को चोट पहुंचे या कोई उसकी आंच में झुलसे। पत्रकार सत्य का प्रवक्ता होता है। उसके सत्य से कुछ को चोट पहुंचती है, तो कुछ अव्यवस्था पर सबकी दृष्टि जाती है। किंतु दुर्भाग्य है कि जिस पत्रकारिता ने चेतना का संचार किया था, वही आज चेतना के हनन का निर्बंध माध्यम बन चुकी है। आजादी के नाम पर शोषण के पैमाने झलक रहे हैं, मिशन के स्थान पर मशीन और प्रोफेशन के स्थान पर सेंसेशन बनकर पत्रकारिता गर्त में जा रही है।
आज 30 मई को हर वर्ष हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। 1826 ई. से 1876 ई. तक का समय हिंदी पत्रकारिता का पहला चरण कहा जा सकता है। 1873 ई. में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हरिश्चंद्र मैगजीन की स्थापना की, जिसने पत्रकारिता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौर के प्रमुख पत्रों में उदंत मार्तंड, बंगदूत, प्रजामित्र, बनारस अखबार, ज्ञानदीप, सुधाकर, लोकमत, धर्मप्रकाश आदि शामिल हैं। हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभ कोलकाता से हुआ और बाद में उत्तर प्रदेश, बिहार और लाहौर में भी हिंदी अखबारों की शुरुआत हुई।
आज की पत्रकारिता में, विशेषकर हिंदी पत्रकारिता में, कई चुनौतियाँ हैं। पत्रकारिता सूचना देती है और दिशा भी, परंतु वर्तमान स्थिति जटिल हो गई है। पत्रकारिता का उद्देश्य समझाना आसान नहीं रह गया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रभाव ने इस विधा को भी प्रभावित किया है। मशीनों ने जहां इसकी धार तेज की है, वहीं भाषा को बढ़ावा दिया है। लेकिन आज की पत्रकारिता बड़ी पूंजी के हाथ में है और इसका व्यवसायीकरण हो गया है।
कुछ हिंदी अखबारों की बढ़ती प्रसार संख्या उन्हें श्रेष्ठता की झूठी श्रेणी में खड़ा कर रही है। हालांकि यह संख्या इसलिए नहीं बढ़ रही कि उनमें देश-दुनिया की खबरें हैं, बल्कि इसलिए कि लोगों को अखबार चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी सच्चाई से दूर कल्पना, रोमांच और अश्लील हास्य परोस कर टीआरपी बढ़ाने की होड़ में है। खोजी पत्रकारिता का भी आज अभाव है। घोटालों के साथ सामाजिक अन्याय, भेदभाव और उत्पीड़न के मामलों का पर्दाफाश करने वाली खोजी पत्रकारिता लगभग समाप्त हो चुकी है। कारपोरेट पत्रकारिता के उदय ने खोजी पत्रकारिता को नुकसान पहुंचाया है।
आज की पत्रकारिता को अपनी सृजनकारी भूमिका को पहचानने की जरूरत है। लार्ड रोजबरी ने अखबारों की उपमा नियाग्रा के प्रपात से की है। गांधी जी ने भी कहा था कि अखबार में भारी ताकत है, परंतु जैसे निरंकुश जल प्रपात गांव के गांव डुबो देता है, वैसे ही निरंकुश कलम का प्रपात भी नाश करता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पत्रकारिता का यह ताकतवर माध्यम सही हाथों में हो।
आइए, इस पवित्र पत्रकारिता दिवस पर हम संकल्प लें कि हम सत्य बोलेंगे, पूरी हिम्मत के साथ बोलेंगे। साहिबो, हम कलम के बेटे हैं, कैसे दिन को रात बोलेंगे।