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रानी लक्ष्मीबाई और भाऊराव देवरस जयंती : संगोष्ठी में जीवनी और योगदान पर डाला गया प्रकाश

रिपोर्ट : शान मुहम्मद (शानू)

महोबा। सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज महोबा में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और भाऊराव देवरस की जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। कार्यक्रम में दोनों महान विभूतियों की जीवनी पर प्रकाश डाला गया और उनके योगदान से प्रेरणा लेने का आह्वान किया गया।

रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और पराक्रम का उल्लेख

कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना और रानी लक्ष्मीबाई व भाऊराव देवरस के चित्रों पर पुष्प अर्पित कर हुआ। हिंदी प्रवक्ता अरुण श्रीमाली ने 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका, महोबा जनपद में उनके आगमन, चरखारी दुर्ग की अष्टधातु तोप, और तात्या टोपे के साथ उनकी गुप्त मंत्रणाओं का विस्तार से वर्णन किया।

संगीताचार्य पंडित जगप्रसाद तिवारी ने रानी लक्ष्मीबाई की साहसिक गाथा सुनाते हुए कहा, “मैं जीते जी अपनी झांसी किसी को नहीं दूंगी” जैसे उनके अमर वचनों ने अंग्रेजों को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई का जीवन साहस, पराक्रम, और देशभक्ति की मिसाल है।

भाऊराव देवरस के सामाजिक योगदान पर चर्चा

कार्यक्रम में भाऊराव देवरस की जीवनी और उनके कार्यों पर भी प्रकाश डाला गया। उन्हें शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया गया। वक्ताओं ने बताया कि भाऊराव देवरस ने विद्या भारती और सरस्वती शिशु मंदिर जैसे संगठनों को नई दिशा दी और संघ कार्य को देश के हर कोने तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।

छात्रों का उत्साहवर्धन

विद्यालय के छात्रों ने भी रानी लक्ष्मीबाई और भाऊराव देवरस के योगदान पर अपने विचार साझा किए। छात्र निवेश सोनी और राघव ने क्रांति और आजादी में रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका का वर्णन किया।

अंत में आभार व्यक्त

कार्यक्रम का संचालन स्पेशल एजुकेटर सुनील दीक्षित ने किया और अंत में विद्यालय के प्रधानाचार्य ने सभी अतिथियों और उपस्थित छात्रों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में समाजसेवी, शिक्षक, और स्थानीय गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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