सीता रसोई में मनायी रानी लक्ष्मी बाई की जयंती
मणिकर्णिका-झांसी की रानी फिल्म की शूटिंग बुंदेलखंड में न होना दुर्भाग्यपूर्ण- तारा पाटकर
महोबा। प्रथम स्वाधीनता संग्राम की महान वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को उनकी 192 वीं जयंती पर आज बुंदेली समाज ने गोरखगिरि के ऊपर सीता रसोई में याद किया और एवं पुष्पांजलि कार्यक्रम आयोजित किया। गोरखगिरि भ्रमण पर पहुंचे सभी साथियों ने उनके चित्र पर माल्यार्पण कर उनके अविस्मरणीय संघर्ष को नमन किया।
इस मौके पर बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई ने अपने शौर्य और पराक्रम से न केवल बुंदेलखंड का गौरव दुनिया भर बढ़ाया बल्कि वे नारी शक्ति के अदम्य साहस की प्रतीक बन गयी। उन्होंने हमें अन्याय के खिलाफ लड़ना सिखाया। पाटकर ने पिछले साल राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने वाली फिल्म मणिकर्णिका-झांसी की रानी की शूटिंग बुंदेलखंड के बाहर होने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया एवं कहा कि बुंदेलखंड में न केवल खूबसूरत किलों की कमी है और न शूटिंग के लिए जरूरी अन्य चीजों की।
पुष्पेन्द्र अरजरिया ने कहा कि लक्ष्मी बाई का असली नाम मणिकर्णिका था और उनका जन्म 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी में मराठा ब्राह्मण मोरोपंत तांबे के घर हुआ लेकिन 4 वर्ष की उम्र में उनकी मां भागीरथी का निधन हो गया। 14 वर्ष में उनकी शादी झांसी नरेश गंगाधर राव नेवालकर से हो गयी और वे रानी लक्ष्मीबाई बन गयीं। उनको प्यार से सभी मनु व छबीली भी कहते थे। सिद्ध गोपाल सेन ने कहा सेना में महिलाओं की भर्ती दुनिया में सबसे पहले उन्होंने की। दुर्गा दल बनाकर उनको युद्ध का प्रशिक्षण दिया। अपनी हमशक्ल झलकारी बाई को सेनापति बनाया। सुधीर दुबे ने कहा कि आजादी की लड़ाई में अवंती बाई लोधी पहली शहीद वीरांगना थीं तो रानी लक्ष्मीबाई दूसरी शहीद वीरांगना थी। वे अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते 29 वर्ष की आयु ग्वालियर के कोटा की सराय में शहीद हुई थी। इस मौके पर पवित्र पाटकार, अवधेश गुप्ता, रामदास महाराज, ग्यासी लाल समेत तमाम लोग मौजूद रहे।