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खंडहर में तब्दील हो रही वीर आल्हा, ऊदल को प्रशिक्षित करने वाले गुरू ताला सैय्यद की मजार  

महोबा। बुंदेलखंड का महोबा जनपद अपनी वीरता के लिए देश में अपनी पहचान रखता है तो यहां का आपसी सौहार्द भी किसी तार्रूफ़ की मोहताज नही है। यहां के वीर आल्हा-ऊदल और उनके गुरु ताला सैय्यद की दास्तां आज भी लोगों की जुबान पर है। यहां की फिजाओं में बारह सौ साल पहले घुली साम्प्रदायिक सौहार्द की महक आज भी जीवंत है। पीढियां गुजरने के बाद भी यहां चन्देल शासन काल में स्थापित साम्प्रदायिक सौहार्द और भाईचारा सामाजिक ताना-बाना को मजबूती प्रदान करता है। महोबा के वीर योद्धा आल्हा-ऊदल इतिहास पुरुष हुए है तो उन्हें रण कौशल में प्रशिक्षित कर अप्रतिम और अपराजेय बनाने वाले गुरु ताला सैय्यद उसी इतिहास के रचयिता कहलाते हैं। यही वजह है कि वीरभूमि के ऐतिहासिक कजली मेला में जुटने वाली लाखो की भीड़ एक तरफ रण बांकुरे दोनों वीर योद्धाओं का स्मरण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करती है तो उनके प्रशिक्षक रहे ताला सैय्यद की मजार में हाजिरी दे सामाजिक सद्भाव और भाईचारा कायम रहने की दुआएं करती है। हालांकि देखरेख के अभाव में सदियों पुराना पुरातात्विक महत्व का संरक्षित स्मारक ष्ताला सैय्यद की मजार अब बेहद जीर्ण-शीर्ण हो अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। जिसको लेकर यहां के स्थानीय लोगों में नाराजगी देखी जा रही है।

बड़े लड़इया आल्हा ऊदल, जेंखर बल के पार न पाय।रक्छक बन परमाल देव के, आल्हा ऊदल जान लुटाये

आल्हा खंड की इस लाइन में आल्हा ऊदल की वीरता साफ झलक रही है इनकी इस वीरता और युद्ध जौहर के पीछे इनके गुरु ताला सैय्यद के त्याग को नही भुलाया जा सकता। मगर फिर भी प्रशासनिक अनदेखी के चलते उनकी मजार खंडर में तब्दील होती जा रही है। देश-दुनिया मे विख्यात बुंदेली धरती के शूरवीरों आल्हा-ऊदल के प्रशिक्षक व मार्गदर्शक ताला सैय्यद असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी थे। वीरभूमि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रवक्ता व इतिहासकार डा0 एल0 सी0 अनुरागी बताते है कि वह मूल रूप से गोरखपुर जिले में ताली गांव के निवासी थे और युद्ध कला में खास निपुण होने के चलते वह वाराणसी नरेश के सैन्य बल का प्रमुख हिस्सा थे। ताला सैय्यद के महोबा आगमन को लेकर कथानक दिलचस्प है। जिसके मुताबिक किसी बात पर वाराणसी नरेश से मनमुटाव होने पर वह जब नौकरी की तलाश में कन्नौज जा रहे थे। तभी बिठूर मेले में उन्हें जानकारी हुई कि माहिल के उकसाने पर राय करिंगा ने महारानी मल्हना के नौ-लखा हार को प्राप्त करने के लिए महोबा पर आक्रमण कर दिया है। इस पर ताला सैय्यद ने त्वरित निर्णय ले महोबा की चन्देल सेना के पक्ष से युद्ध लड़ा और अप्रतिम वीरता प्रदर्शित कर राय करिंगा को मार भगाया। जगनिक शोध संस्थान के सचिव डा0 वीरेंद्र निर्झर बताते है कि राय करिंगा से हुए युद्ध मे ताला सैय्यद के शौर्य और पराक्रम ने चन्देल नरेश परमाल को काफी प्रभावित किया। यही वजह रही कि परमाल ने तब उन्हें अपने राज्य में आश्रय दे युवा सैनिकों आल्हा,ऊदल,मलखान,ढेबा आदि को युद्ध कला में पारंगत करने की अहम जिम्मेवारी सौपी। इतिहास गवाह है कि ताला सैय्यद का प्रशिक्षण पाकर ही आल्हा और ऊदल परम् प्रतापी योद्धा बने और उनके नेतृत्व में चन्देल सेना ने पचास से अधिक युद्धों में विजय श्री प्राप्त की। डा0 निर्झर कहते है कि ताला सैय्यद ने चन्देलों की ओर से अनेक लड़ाइयों में भाग लिया। उरई के निकट बैरागढ़ के युद्ध मे वह वीरगति को प्राप्त हुए थे। तब आल्हा उनके शव को युद्ध भूमि से उठाकर महोबा लाये थे। उन्हें कीरत सागर से सटी पहाड़ी में दफनाया गया था।

     इतिहासकारों की मानें तो ताला सैय्यद को बुंदेलों ने धर्म और सम्प्रदाय से ऊपर रखा है। उन्हें राष्ट्र प्रेमी व त्याग और बलिदान के प्रतीक के रूप में मान्यता मिली। इसी के चलते महोबा में सावन के मौके पर प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले कजली मेले के अवसर पर उन्हें आल्हा-ऊदल के समानांतर दर्जा देते हुए याद किया जाता है। मेले के पहले दिन कीरत सागर सरोवर में जुटने वाली लाखों की भीड़ कजली विसर्जन की प्राचीन परंपरा का निर्वहन करने के उपरांत पहाड़ी में स्थित ताला सैय्यद की मजार में हाजिरी दे उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करती है। इस बार महोबा के विख्यात कजली मेला की 842 वीं वर्षगांठ है। जो आगामी 31 अगस्त से आरंभ हो रहा है। जिलाधिकारी मनोज कुमार ने कहा कि पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक होने के कारण ताला सैय्यद की मजार में किसी प्रकार का काम कराया जाना मुश्किल है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को स्मारक के खंडहर में तब्दील होने की चिंता से अवगत करा दिया गया है।  

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