पुस्तक समीक्षा/डा. रवीन्द्र अरजरिया
महोबा। समय के साथ बदलती परिस्थितियां ऐतिहासिक दस्तावेजों के माध्यम से स्वयं के मूल्यांकन का अवसर प्रदान करतीं है। गौरवशाली अतीत के बिखरे पन्नों को समेटना, सहेजना और फिर उसे समाज के सम्मुख प्रस्तुत करने की चुनौती को स्वीकार करते हुए परीक्षा देना, सहज नहीं होता। यही असहज कार्य उत्तर प्रदेश का स्वतंत्रता संग्राम -महोबा नामक पुस्तक के लेखक सन्तोष कुमार पटैरिया ने किया है। बुंदेलखण्ड के स्वर्णिम अतीत को शब्दों के आकार से प्रेरणादायक बनाने में लेखक ने जी-तोड मेहनत की है। भौगोलिक आंकडों से लेकर सामाजिक पृष्ठभूमि तक को रेखांकित करने की सहजता के साथ-साथ प्रमाणिक दस्तावेजों को एकत्रित करने के कठिनाइयों से भी दो-दो हाथ किये गये तब कही जाकर आजादी के अमृत महोत्सव में जिले की पुस्तकीय भागीदारी एक बार फिर दर्ज हो सकी है। गोरों के क्रूरतापूर्ण शासनकाल की कडुवाहट, स्वाधीनता के मतवालों का जुझारूपन, बुंदेली रणबंकुरों का शौर्य और आम आवाम की भागीदारी के साथ-साथ देश के मीर कासिम जैसे भितरघातियों को भी रेखांकित करने वाले विभिन्न कथानकों को पुस्तक में स्थान दिया गया है।
हवेली दरवाजा पर स्वाधीनता के 16 मतवालों को इमली के पेड पर दी जाने वाली सामूहिक फांसी ने जहां अंग्रेजों की ज्यादतियों की आतंकी चेहरा बेनकाब किया वहीं चरखारी के स्वामी प्रसाद, कुलपहाड के लाल बहादुर, काकुन के नाथूराम, टिगुंरा के मातादीन पस्तोर, महोबा के भगवानदास रैयकवार जैसे मां बुंदेली के सपूतों का प्राण-प्रण से राष्ट्रहित में लग जाने की घटनाओं ने साहस का परचम फहराया है। जैतपुर के राजा परीक्षत के प्रेरणादायक संदर्भ आज भी राष्ट्रवादिता का वास्तविक चित्रण करते हैं। दिवान देशपत बुंदेला के देश-भक्ति वाले कथानक वर्तमान में भी गर्व से कहे सुने जाते हैं। स्वाधीनता संग्राम में शहीद हुए सेनानियों के परिवारों, गांवों और सामाजिक स्वीकारोक्ति के वर्तमान स्वरूप को व्यापक रूप से प्रस्तुत किया गया है। लेखन की शैली में संस्मरणात्मक की प्रमुखता होने के साथ-साथ अनेक स्थानों पर छायावाद ने भी स्थान पाया है। विश्लेषात्मक से लेकर उदाहरणात्मक विधाओं तक ने प्रस्तुतीकरण को हौले से स्पर्श किया है जिसके कारण अध्ययन के दौरान निरसता का बोध नहीं होता। पुस्तक की भूमिका स्वयं लेखक ने प्रस्तुत की है, सो उसमें समग्रता का संक्षिप्त स्वरूप देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश संगीत नाट्य अकादमी तथा नई किताब प्रकाशन ने पुस्तक का संयुक्त रूप से प्रकाशन किया है। पुस्तक ने प्रकाशित बुंदेली इतिहास की श्रंखला में एक और महात्वपूर्ण कडी जोड दी है।
अमृत महोत्सव के अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश पर लिखी, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ व नई किताब दिल्ली से प्रकाशित इस ऐतिहासिक दस्तावेज की कृति को जनपद के सभी विद्यालयों के पुस्तकालयों में होना चाहिए हो ताकि विद्यार्थियों को महोबा के इतिहास व स्वतंत्रता की बलिवेदी पर निछावर होने वाली विभूतियों के बारे में जानकारी हो सके वरिष्ठ पत्रकार डॉ रवीन्द्र अरजरिया ने इसका समीक्षात्मक अध्ययन किया है।