– तो क्या सरकारों की नीति नियोजन में खामियां तो नहीं ?
रिपोर्ट :- मुकेश यादव
महोबा। अकूत खनिज सम्पदा का धनी बुंदेलखण्ड फिर भी दीन हीन मलीन क्यों ? दो प्रदेशो मे बटा बुंदेलखण्ड अकूत सम्पदा का धनी होने के बाद भी यहाॅ के वासिंदे दो वक्त की रोजी रोटी के लिए मुहताज है।
ग्रामीण अंचलो मे युवा नही उनके घरो पर अधिकतर वृद्ध लोग मिलते है, और युवा दो वक्त की रोजी रोटी के लिए राष्ट्र के बड़े शहरो की ओर आठ माह के लिए पलायन कर जाता है। बुंदेलखण्ड का युवक बचपन से लेकर जवानी तक दो वक्त की रोटी के लिए भटकता रहता है। 10- 12 वर्ष की आयु मे ही उसे जोखिम भरे कार्य करने पड़ते हैै। उदर मे लगी दो जून की रोटी की आग को शांत कर पाता है। उसे नही पता कि प्राथमिक विद्यालय तथा इण्टर कालेज क्या होते है, इन भविष्य ग्रहो की एहमियत से वह पूरी तरह बेखबर होते है। राष्ट्र के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते है कि हमारी सरकार सबका साथ सबका विकास, सभी का सम्मान तो फिर उन नौनिहालो को उनके विकास से क्यो वंचित रखा जा रहा है, जिनके हाथो मे कलम, दवात और पढ़ने की पुस्तके होना चाहिए वह किसी होटल की प्लेटे साफ कर रही है या फिर किसी व्यापारी की दुकान पर अपनी बौद्धिक तथा शारीरिक क्षमता से अधिक वजनी सामान को सारे दिन इधर से उधर ढाते रहते है। भूलवस उनके साथो से कोई सामान छिटक गया तो व्यापारी तथा दुकानदार के हाथो मार भी खाना पड़ती है उस नुकसान की भरपाई मे बच्चे की दैनिक पगार भी उसका मालिक काट लेता है। बुुंदेलखण्ड के 30 से 40 प्रतिशत युवक रोजी रोटी के तलाश मे प्रत्येक वर्ष देश के बड़े शहरो की ओर पलायन कर जाता है, ऐसा सब कुछ इसलिए हो रहा है कि कही ना कही केन्द्र तथा प्रदेश सरकार की नीति नियोजन मे खामिया है। बुुंदेलखण्ड की वसुधा खनिज सम्पदा की धनी होते होते हुए भी यहाॅ के मूल निवासियो को रोजी रोटी की तलाश मे देश के अन्य बड़े शहरो मे भटकना पड़े और बाहरी लोग खनिज सम्पदा का उत्खनन कर प्रतिमाह लाखो करोड़ो की सम्पदा का खनन कर दो चार दिन मे ही करोड़पति बन बैठते है तो क्या इसमे सरकार का द्वेष नही तो क्या यहाॅ के वासिंदो का है ?
बुंदेलखण्ड के ही जनपद झांसी से लेकर हमीरपुर तक तथा हमीरपुर से बांदा, चित्रकूट तक की वसुधा अकूत सम्पदा से परिपूर्ण है। बेतवा, धसान तथा अन्य छोटी जो बुंदेलखण्ड की धरा से प्रवाहित होती है उनमे 24 घंटे एलएनटी मशीनो से खनन होते देखा जा रहा है। नदियो के अतिरिक्त पहाड़ो पर होल कर बारूद को भरकर खनन किया जा रहा है। बुंदेलखण्ड की धरा पर 24 घंटे नदी हो या पहाड़, खेत हो या खलिहान हर समय उत्खनन जारी है। बुंदेलखण्ड के ही पन्ना जिले से उदगम हुई केन नदी जो मध्यप्रदेश के ही जनपद छतरपुर से होते हुए बांदा से प्रवाहित होने वाली केन नदी मे एलएनटी और जेसीबी मशीनो से चमकीली चांदी का खनन 24 घंटे होता है। बालू खननकर्ता 24 घंटे मे ही लखपति से करोड़पति बन रहे है और यहाॅ के वासिंदे दो जून की रोटी के लिए मुहताज है। हमीरपुर जनपद की सीमा से प्रवाहित धसान, बेतवा आदि छोटी बड़ी नदियो से चमकीली चांदी की धुलाई और खुदाई दिन रात होती है। करोड़ो की सम्पदा बाहरी लोग प्रतिदिन ट्रको, डम्फरो के माध्यम से उठा ले जा रहे है। पहाड़ो नदियो के अतिरिक्त, पन्ना, सतना, चित्रकूट, महोबा आदि बुंदेलखण्ड के जनपदो के जंगलो मे खड़ी बेशकीमती लकड़ी जिसमे शीशम, सागौन आदि की कटान हो रही है। जंगल के जंगल साफ हो चुके है। खनिज सम्पदा के धनी बुंदेलखण्ड आज भी अपनी मालीय हालत पर आंसू बहा रहे है और बाहरी लोग रातो – रात लखपति से करोड़़पति बन रहे है। छतरपुर जिले की तहसील लौड़ी स्थित एक पहाड़ मे टाइल्स का पत्थर का उत्खनन वर्षो से चल रहा है जिसे भारत के साथ- साथ अन्य राष्ट्रो को भेजा जाता है। गांव मुडे़ढ़ी मे निकल रहे टाइल्स पत्थर को दुबई तक भेजा जाता है इस प्रकार की खबरे मिल रही है। ये पहाड़ ठेकेदार प्रतिवर्ष अरबो रूपये कमा रहा है और उस गांव के वासिंदो को महज डस्ट नसीब होती है जिससे लोग टीबी और श्वास की बीमारी से ग्रसित हो रहे है।